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Showing posts from 2016

तेरी मुरलिया सुन

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साभार गुगल प्रसंग----       कान्हा जब बिरज छोड़ जाते है तेरी मुरलिया सुन कर राधा लोक ये भूल चली मधुबन में सखि राधा प्यारी मन को छोड़ चली श्याम सखि अब कौन पुकारे कान्हा जल बिंदु बने होठों पर हँसी आई की तूम से हर आस जुड़ी पाई करुणमयी बादल सा कभी लगे माँ के आँचल सा पागल मनवा रीत ना जाने अजब सी प्रीत  भरे तड़प के बोले बोल कोयलिया श्यामा क्या रंग भरे काला सधन मेध ये बोले, कैसो - कैसो दरस  मिले आराधना राय

गीतों की बाती

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आंसुओं से पग पग धो कर कब से आई रे गीतों की बातीआसुओं की माला पहनाई रे जिन नयनों से किया दरस पिया का आजहू रो - रो के मन के दिए जलाए  क्यों मन को अब कोई ठोर ना दिखता बावरा हो कर मन आस क्यों जगाए रे मिटटी की मूरत माटी की गति ही पाए रह गया मन के संबधो का पतला धागा सब कुछ स्मृति के नीर से बहता जाए रे पागल मनवा सुनता नहीं निज मन की आंसुओं से पग पग धो कर कब से आई रे गीतों की बातीआसुओं की माला पहनाई रे आराधना राय अरु

कान्हा

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साभार गुगल रोएगी सगरी ब्रिज की ये गलिया हंस ना सकेगी मधुबन की कलियाँ अब के बिछुर के गले मिल न सके हठ कर ज़ी भर रोएगी ये अखियाँ आराधना राय अरु

राधा- कृष्णस्वप्न सलोने

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          स्वप्न सलोने देने वालो सपनों का आकाश बनालो                                                                         धीर-धरम को रीत  बना कर, सपने की आस जगलो।।                                                                                                                                                  कंचन देह बना के देखि सुमन ,सुधा,हर्षा के भी देखे                                                                         पैरों के कांटे भी देखे, हाथो के छाले दुख के भी देखे।।                                                                                                                                                रूप नवल है ,सोने जैसा,हो जाना है मिटटी के जैसा                                                                        कर्म- विधान इक अपना लो, जीवन को कर्मठ बना लो।।                                                                                                                                                       आराधाना राय अरु

गीत नाट्य काव्यात्मक संवाद

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गुगलसाभार आध्यात्म कहता है राधा ही कृष्ण थी कृष्ण राधा  कैसे इसी प्रश्न को राधा ने भी दोहराया था                                                                 सबसे बड़ा है  प्रश्न कौन है  हम     परिदृश्य-----श्याम वर्णी सो रहे थे, मंद मंद से समीर में खो रहे थे, भोर का प्रथम आगमन था, वहाँ कलियों ने मुख ना देखा था ,                                          गोपियाँ                            कलियों ने मुख ना देखा था ।                                           झरझर करती नीलमा आई                                          मुख देख कृष्णा का लजाई ।                                         'अरु' श्यामा मुख चुम आई                                          तीखे  बयन सब सुन आई ।   राधा संवाद --               राधा बोली क्या मैं राधा बन आई सखि कान्हा बोले-            तू मेरी बाला है,राधा है ,सीता के बिन,राम नही तो तू राधा,सीता- सखी, मेरी बाला है ।                                मेरे अंतरमें राधा ,तू कार्य रूप शक्ति है प्रेम है पर मेरे ही अंतस की ज्वाला है, राधा त

नव रंग रस

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नव रंग रस को बोल कर कोयलिया कहाँ चली पीहू- पिहू मचा के शोर तू कित उड़ - उड़ चली कारे -कारे बादरा तू भी झूम ले संग -संग कभी ना तू मुँह से बोल बोलियों पी आ गए मेरे सखि मुख से बोलूँगी अखियों से अपने रस को धोलुंगी हिय से हिय कि बात बनमाल लिए कुंज में डोलूँगी पी के दरस कि प्रेम दीवानी बन वन वन ना डोलूँगी "अरु" पिय कि पीर संग नित तुम संग ना यूँ बोलूगी आराधना राय "अरु"

राम रट लागि

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कैसे छोड़ू  राम  रट लागि जिन नयनों से अंजन लीनी  खंजन  कपोत कह लाती     कैसे छोड़ु राम  रट लागि अश्रु  मेरे  राम ने दीन्हाँ नयना  खो  कहाँ  जाती अश्रु  मेरे  राम ने दीन्हाँ उड़ते खग का नहि भरोसा उड़- स्वपन लोक पा जाते कैसे छोड़ू  राम  रट लागि  चुग  के उड़ते अपना दाना  किसने बैरागी खग को रोका    कैसे छोड़ू  राम  रट लागि राग -बैराग  बसा  मन  में तुझे  सुख- दुख में  पाती  मन  में बसे राम  संग माहि  कुटिया  संग  वृक्ष  है  रोपा मनका महल बना क्या देखा राम  सकल  धुन  पे  नाची   आराधना राय "अरु" Like Love Haha Wow Sad

साईं

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 साभार गुगल    भोर का प्रकाश बन झिलमिलाना मेरे साईं     घर में ज्ञान का दीप तुम जलाना मेरे साईं     साथी बन रास्तों पर कहीं मिलना मेरे साईं     दुःख में मन में आस्था बन चलाना मेरे साईं       सुख मिले जगत में या दुःख मिले हमे साईं     लब पर तेरा  नाम  सुबह शाम हो बस साईं    हो अँधेरा मन का रोशनी बन मुस्कुराना साईं    प्रीत बन भक्ति कि मेरी सदा संग रहना साईं  आराधना राय "अरु"       

साईं रखना ध्यान

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  मन कि मेरी आत्मा करती है अरदास   दुःख में सदा साईया सदा तुम ध्यान  आराधना राय "अरु"

साईं भजन

गीत बन कर तू मुस्कुराया है साईं नाम का दिया जलाया है नाम  लब पर सुबह शाम आया है  आरती सा अपना मन बनाया है साईं  मनके से मन फिरा नहीं दुनियाँदारी में मन को लगाया है  मेरे  विलाप तूम भी सुन सको तो जमाने की हर ठोकर को खाया है तुम्हारे बिन मिटते नहीं मन के अँधेरे उजालों में आज हमने घर बनाया है चाँद तारो का जहान लगता है अपना "अरु " ने साईं को अपने बुलाया है आराधना राय अरु

भक्ति गीत

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चित्र साभार गुगल         1   वन - वन घुमे राधा प्यारी          किन नयनं कि आस में          जहाँ पिया  से मिलेगे.........       2  साँचा मनवा भटकत काहे           पाए नहीं क्यों चैन रे           दिया बन के चलेगे..........    3   बाती बिना नहीं जलता दीपक         ज्योति बुझे ना आस कि         जियरा फूल खिलेगे .................  4    कान्हा - कान्ह टेर लगाई        मधुबन के बाल - ग्वाल ने         सगरे  मिल के चलेगे............. 5     तुम बसते मन मंदिर न्यारे        श्रद्धा भर विश्वास में "अरु"        कान्हा- राधा संग मिलेगे          आराधना राय "अरु"

राम नवमी पर विशेष

राम नवमी पर    विशेष लक्ष्मण से बोले रघुवर भईया हमें बताना रे अपयश ना तू लगाना रे पूछेगी माता तेरी लक्षमण कहाँ बताओ दूँगा जवाब क्या मैं उठ के मुझे बताओ दुर्लभ है जग में तूम सा भाई सहोदर पाना रे आरधना राय  "अरु" समर्पित स्वर्गीय परम पूज्यनाना जी को   पूर्व उप - निदेशक शिक्षा बोर्ड उत्तर प्रदेश पंडित त्रिवेणी राय शर्मा 

माँ कि भेंट

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द्वार तिहारा खुला रहे माँ सज़ा रहे दरबार रे सब बिगड़ी बनाने वाली पूरी करती आस रे भोली भाली सूरत माँ कि करुणामय मुस्कान रे द्वार तिहारा खुला रहे माँ सज़ा रहे दरबार रे माँ सा कोई कहाँ जगत में निश्छल माँ का प्यार रे दुनियाँ है तेरे श्रीचरणों में साँचा तेरा नाम रे द्वार तिहारा खुला रहे माँ सज़ा रहे दरबार रे मन कि सब की जानने वाली करूँ मैं तेरा ध्यान रे ज्योति जले दिन- रैन दीये कि अम्बा तेरे प्यार में द्वार तिहारा खुला रहे माँ सज़ा रहे दरबार रे तारों की बारात सजी है जगमग जैसे थाल रे धार जहाँ गंगा कि बहती ऊँचे- ऊँचे पहाड़ रे द्वार तिहारा खुला रहे माँ सज़ा रहे दरबार रे निर्मल मन कि तू ही धनी है लक्ष्मी तेरा नाम रे ज्वालामुखी बन पाप हरे माँ दुख भंजनी तेरा नाम  रे द्वार तिहारा खुला रहे माँ सज़ा रहे दरबार रे लाख दुःख चाहे घिरे रहे माँ लेती रहूँ तेरा नाम रे लाज़ माँ तू "अरु" कि रखना तेरे दर से है आस रे द्वार तिहारा खुला रहे माँ सज़ा रहे दरबार रे आराधना राय "अरु"

सावरे

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चित्र साभार गुगल नटनागर सावरे नैना हो गए बावरे मीठी मुरलिया कि तान सुना ओ नटनागर............ जाऊं कभी यमुना तो पीछे- पीछे आए रे देख के अकेली मेरी मटकी गिराए रे कैसा ये छलिया ने जादू डाला ओ नटनागर............ किसी दिन बांसुरी मैं तेरी चुराऊँगी चूम - चूम होठों से सीने से लगाऊँगी कैसा ये मुरली ने जादू डाला ओ नटनागर............ आराधना राय "अरु"

गीत------ मैं सब हारी रे

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 चित्र साभार गुगल मैं  सब हारी रे जीवन में अपनाया तेरा नाम रे मुझे भाया नहीं कोई काम रे मैं  सब हारी रे तन से उज़ली मन कि मैली  लोभ मोह कि तृष्णा  झेली  मैं तिहारी रे  सब कुछ ही समाया तेरे धाम में  मैं तो भूल गई सारे काम रे मैं  सब हारी रे आती- जाती साँस भी तेरी  पाती - लिखू मैं नाम कि तेरी  भई मतवाली रे तूने है पिलाया ऐसा जाम रे जग आया नहीं मेरे काम रे आराधना राय "अरु"

दुनियाँ ही संवर जाए

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साईं जिसे मिल जाए  दुनियाँ ही संवर जाए सर रख के चरणों में जीवन ही संभल जाए,............................1 वो दीप जला मन में अंधकार ही मिट जाए साईं तेरे दर पर ही मुक्ति मुझे मिल जाए साईं जिसे मिल जाए दुनियाँ ही संवर  जाए..........................2 दुःख दर्द  ज़माने का क्या तुझ को दिखलाए आँसूं जो छलकते है तेरे चरणों कि रज पाए साईं जिसे मिल जाए दुनियाँ ही संवर  जाए................................3   बैर- भरम मन के  अब लेके किधर जाए  मन मैल भरा अपना  गंगा से क्या नहलाए साईं जिसे मिल जाए दुनियाँ ही संवर  जाए................................4    मिट्टी के खिलौने है  मिट्टी में  मिल जाए  माट्टी का घड़ा मन का  तेरे  प्रेम से भर जाए साईं जिसे मिल जाए  दुनियाँ ही संवर  जाए................................5 कोई राम बना पूजे कोई श्याम बना पूजे साईं संत अनोखा सा मेरे मन में बस जाए साईं जिसे मिल जाए  दुनियाँ ही संवर  जाए................................6 पानी से जलते दीपक  उस दर पर सभी जाए दुख अपने रो -रो कर साईं  तुझ को बतलाए साईं जिसे मिल

साईं अपनों मन बसा

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साभार गुगल साईं  अपनों मन बसा इत- उत  खोजने जाए रूप कि गागर भर चली कितने भरम दिखाए. साईं  अपनों मन बसा...............................................2 मोल लगा  निरी माट्टी का जग पगला हुआ जाए. क्या करूँ  इन नयनं का जो तेरा दरस ना पाए. साईं  अपनों मन बसा.................................2 सकल  प्याला प्रेम का परम बना पी जाए. कैसी लम्बी डोर ये उलझी- सुलझी जाए. साईं  अपनों मन बसा.................................2 साईं,बैठी सब हार कर सुझा कुछ ना जाए. देख रही हूँ प्रभू तम्हें मन को दिया बना साईं  अपनों मन बसा.................................2 जग का मोह चला गया  घट - घट वो ही समाए..  कण- कण  रमता साईं है  देखत  नयन तर जाए साईं  अपनों मन बसा.................................2 सब कर्मो का खेल "अरु" जीवन इसमें जाए गया समय आता नहीं अब काहे पछताए. साईं  अपनों मन बसा.................................2 आराधना राय "अरु"

चेत्र नवरात्र

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  माँ तूम प्रेम की धारा  सकल विश्व ही हारा  माँ तूम प्रेम कि  धारा................................................2  मन में प्रकाश तुम्हारा सृष्टि रूप तूमने धारा.. ज्ञान सत्व से नहलाती अनुपम प्रेम है तिहारा, माँ तूम प्रेम की धारा...................................................2 प्रथम पूजे संसार तुम्हें श्रृंगार धरती करें तिहारा नव शक्ति, मान तुम्हीं हो  निसदिन  लेते नाम तुम्हारा माँ तूम प्रेम कि धारा.........................................................2 स्वर का हर नाद तुम्ही हो                ब्रहम- वादिनी,  सत्यवादिनी श्वेत दुग्ध सी धार तुम्ही हो तूम ही अदि तुम्ही में अंत जन्म - जन्म का सार  तुम्हीं हो माँ तूम प्रेम कि धारा.........................................................2

सभी समाए --------भजन

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हरि देखूँ किस रूप में तुझको तुझ में सभी समाए गिरधर कि मीरा को देखूँ राधा कोई मोहे भाए.............. हरि देखूँ किस रूप में .............................2 देख लिया इस जग बंधन को अखियन नीर बहाए पीड भरे इस मन  कि दुखिया   जगत थाह ना पाए हरि देखूँ किस रूप में ........................................2 देख लिया है रूप सलोना छलिया मन भटकाए  "अरु" इस मन का भेद अनोखा चाकर बन रह जाए हरि देखूँ किस रूप में ...............................................2 आराधना राय "अरु"

अब काहे पछताए---------------भजन

बीती उमरिया हरि नाम संग ऋतु आए ऋतु जाए दीप जला कर प्रेम का कौन अँधेरा पाए नेह कि डोर बंधी तुझसे मन बावरा कहलाए जानी नहीं महिमा ईश्वर कि अब काहे पछताए हरि - हरि बोले मुख से अपने ईष्या द्वेष  समाए साची करनी कर के जग में सब का हित कर जाए  रोग लगा है  मोह का ऐसा  दंभी मन घबराए  सुमिरन कर हरि नाम का हिया को पिया ही  भाए "अरु" भजे हरि नाम को अब क्या समझे समझाए आराधना राय "अरु"

सावरिया- गीत

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मन ही मन में पिया पुकारूँ सावरिया सावरिया------- जिया धड़के होले होले जाए कित बावरिया............ छलके नीर मोती बन के  बोले रे पायलिया............. पीर  भर नयन भी कहती श्यामा  पढूॅ  पईयां ,,,,,,,,,,,,,,,, आराधना राय "अरु"

शिवः शिवम

कहते है यह स्तोत्र रावण ने शिव को प्रसंन करने के लिए रच डाला था, हिमालय पर्वत को एक स्थान से दुसरे स्थान ले जाने कि उत्कंठ इक्छा से रावण ने हिमालय को अपने बाहू बल का प्रयोग कर उठा लिया, पर शिव कहाँ कही और जाते उन्होंने बाएँ पैर का अंगूठे का दबाब बना कर रावण को ही हिमालय के बीच दबा दिया , तब कुछ पलों में उन्होंने  स्तोत्र रच डाला..................................शिव के प्रसन्न होते ही उन्हें मन चाहा वरदान प्राप्त हुआ...... जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌। डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥ जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी । विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि । धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥ धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर- स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे । कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥ जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा- कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे । मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भू

नमामीशमीशान

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् | निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेङहम् ||१|| निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् | करालं महाकालकालं कृपालं गुणागारसंसारपारं नतोङहम् ||२|| तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं मनोभूतकोटि प्रभाश्रीशरीरम् | स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगंगा लसदभालबालेन्दुकण्ठे भुजंगा ||३|| चलत्कुण्डलं भ्रुसुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् | मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ||४|| प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् | त्रयः शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं भजेङहं भावानीपतिं भावगम्यम् ||५|| कलातिकल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनान्ददाता पुरारी | चिदानंदसंदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ||६|| न यावद उमानाथपादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् | न तावत्सुखं शान्ति संतापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ||७|| न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोङहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् | जरजन्मदुःखौ घतातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ||८|| रुद्रष्टकमिदं प्रोक्तं विपेण हरतुष्