साईं अपनों मन बसा
साभार गुगल
साईं अपनों मन बसा
इत- उत खोजने जाए
रूप कि गागर भर चली
कितने भरम दिखाए.
साईं अपनों मन बसा...............................................2
मोल लगा निरी माट्टी का
जग पगला हुआ जाए.
क्या करूँ इन नयनं का
जो तेरा दरस ना पाए.
साईं अपनों मन बसा.................................2
सकल प्याला प्रेम का
परम बना पी जाए.
कैसी लम्बी डोर ये
उलझी- सुलझी जाए.
साईं अपनों मन बसा.................................2
साईं,बैठी सब हार कर
सुझा कुछ ना जाए.
देख रही हूँ प्रभू तम्हें
मन को दिया बना
साईं अपनों मन बसा.................................2
जग का मोह चला गया
घट - घट वो ही समाए..
कण- कण रमता साईं है
देखत नयन तर जाए
साईं अपनों मन बसा.................................2
सब कर्मो का खेल "अरु"
जीवन इसमें जाए
गया समय आता नहीं
अब काहे पछताए.
साईं अपनों मन बसा.................................2
आराधना राय "अरु"
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